ओशो को हम किसी व्यक्ति विशेष के रूप में नहीं देखते। ओशो तो प्रेम, ध्यान, संगीत, नृत्य, गीत, रस, मस्ती सभी कुछ हैं।जबसे हमने ओशो साहित्य का अध्ययन प्रारंभ किया तब से हमारे संगीत में प्रेम की फुहार पड़ने लगी है। ओशो ने संगीत को प्रेम बांटने का सशक्त माध्यम बताया है। और ओशो का यही प्रेम हमारे संगीत के प्राण बनकर झरने लगा है।