About the Book
ताज़ा शेर मज़्मूआ (ग़ज़ल संग्रह) है जो बहुत जल्द शाया होकर मंजरे-आम पर आने वाला है। इसका नाम ताज़ाकार इसलिए रखा गया है के तमाम कयनाथ ही ताज़ा ब ताज़ा के उसूल पर आधारित है। हर लम्हा एक दूसरे से मुख़्तलिफ़ होने के साथ-साथ ताज़गी से भरपूर होता है। कुदरत का यही उसूल इनसानी ज़िन्दगी को हर वक़्त ताज़गी देकर लुफ्त से भरपूर बनाये रखता है।
'ताज़ाकार' में पूरी कोशिश की गयी है कि फ़िक्रों-ख़याल कि ताज़ाकारी और हुस्नो-कमाल की रंगीनी बरकरार रहे। उम्मीद है ये कलाम इल्मो-अदब की कसौटी पर खरा उतरेगा और इसे बार-बार पढ़ा जाएगा।