About the Book
मोमिन' कि कल्पना शक्ति अत्यन्त कोमल है और उनकी शाइरी में जिस प्रकार की उपमाओं को प्रयोग मिलता है, वे बहुत उच्च स्तर की हैं। उनकी भाषा में कुछ ऐसे गुण विद्यमान हैं, जो उनके प्रत्येक शे'र में दिखाई देते हैं। हकीम मोमिन ख़ां 'मोमिन' मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन थेजो पहले दिन से ही दिल का कहा न करते हम तो अब ये लोगों की बातें सुना न करते हम अगर न दाम में ज़ुल्फ़ें सियह के आ जाततो यूं ख़राब ओ परीशां रहा न करते हम अगर न लगती चुप उस बदगुमां की शोख़ी सेतो बात-बात में मुज़्तर हुआ न करते हम अगर जलाते न उस शोला रू के इश्क़ में जीतो सोज़े आतिशे ग़म से जला न करते हम उस आफ़ते दिल ओ जां पर अगर न मर जातेतो अपने मरने की हरदम दुआ न करते हम न भरते दम जो किसी शोला रू की ख़्वाहिश कातो ठंडी सांस हमेशा भरा न करते हम अगर न आंख तग़ाफ़ुल शआर से लगततो बैठे-बैठे ये यूं चौंक उठा न करते हम न होश खोते अगर उस परी की बातों पर तो आप ही आप ये बातें किया न करते हम अगर न हंसना हंसना किसी का भा जाता तो बात-बात पे यूं रो दिया न करते हमी े ।